१२ मंसिर २०८१ बुधबार
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कला

जीवन-जगत् श्रीमय श्री!

कविता

तेजेश्वरबाबु ग्वंगः।

गहनतम मर्मलाई,

सरलतम शैलीमा गाउनु-

गीता गायन गायत्री!

गाइन्छ गायत्री साँझ, विहार

प्रहर प्रहर आठै प्रहर!

गेय-गुण-श्री...!

उच्चतम् उपलब्धि श्री!

सकर्मक मनश्री, चित्तवृत्ति श्री!

सङ्कल्प श्री! सङ्कल्पित दृढ मन श्री!

भुक्ति-मुक्ति श्री! निष्काम समर्पण श्री!

सबैका सार गीता गेय श्री!

जीवन जगत् श्री!

प्रकाशित: २६ कार्तिक २०७९ ०२:१६ शनिबार

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