कला

सधैंझैं रंगीन छैन यो साँझ अचेल बेग्लै छ

गीत

हे प्यारी कसम सम्झिन्छु सधैं यो सन्ध्या एक्लै छ,  

‘सधैंझैं रंगीन छैन यो साँझ अचेल बेग्लै छ।’२

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त्यो हाँसो छैन, त्यो प्यार छैन, छ बाँकी रोदन यही,

हिजोझैं सुन्दर यो घर छैन, फोहोर जताततै।

टोलाई बस्दा तिमीले भन्थ्यौ यो कोठा एक्लै छ?

‘सधैंझैं रंगीन छैन यो साँझ अचेल बेग्लै छ।’२

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छोडेर गयौ के सोच्यौ प्रिया, यो आँसु सस्तो छ,

निरोगी ‘बोध’ भइराछ रोगी तिमीलाई कस्तो छ?

नसक्ने भुल्न त्यो तिम्रो याद तस्वीरमा बेग्लै छ,

‘सधैंझैं रंगीन छैन यो साँझ अचेल बेग्लै छ।’२

प्रकाशित: २९ वैशाख २०८० ०७:१८ शुक्रबार

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